कोई प्रबल मोह जीने से उतर रहा है ...खट्...खट्...
अनुत्तरित सवालों से बींधा है
आँगन पार करे से पहले पलटेगा जरूर
पहली और आखिरी बार
धँसकर गड़े विश्वास से विलग रहा है व्यामोह
विपथगा...
कि अब कोई भाव थिर न रह सके शायद
एक समवेत अनुनाद
कि भरते ही खाली
खाली होते ही भरना
भीतर कुछ भरा सा महसूस होता है
इस तरह कि छलकता नहीं है कुछ भी
बहिर्गमन को उद्धत नीले निशानों को रोकती है कमीज
और जमीर तुम्हारे पास जाने से
मैं जब मैं होता हूँ
कि मैं जब भी मैं नहीं होता
तुम्हारी जड़ों की खाद होना चाहता हूँ